
भले ही सरकारें टीवी पर स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन के विज्ञापन चला रही हों, लेकिन दमोह जिले के चंदपुरा गांव की सच्चाई इन वादों को धूल चटाती नजर आई। 22 वर्षीय बबली लोधी, जिसे प्रसव पीड़ा हुई — लेकिन अस्पताल जाने के लिए सड़क तक नसीब नहीं हुई।
“जहां नेताओं की कारें उड़ती हैं, वहां जनता अब भी ट्रॉली पर लटक रही है!”
ट्रॉली बनी एंबुलेंस, सड़क बनी दुश्मन
बबली को गांव से घटेरा उप-स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाना था। कच्ची सड़क और गड्ढों से भरे रास्ते ने एंबुलेंस को OUT कर दिया। नतीजा: खेत में भूसा ढोने वाली ट्रॉली को बना दिया गया “एम्बुलेंस 2.0”। 6 किलोमीटर का दर्द भरा सफर, और महिला कराहती रही।
“इतना झटका तो Roller Coaster में भी नहीं लगता, जितना इन गड्ढों ने दिया!”
वीडियो वायरल — सिस्टम की असलियत लाइव
इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
लोग कह रहे हैं — “यह 2025 का भारत है या 1955 का?” “क्या ट्रॉली से अस्पताल जाना ही अब ग्रामीण भारत की रफ्तार है?” “सड़क मांगते-मांगते अब पेट फटने की नौबत आ गई!”
ग्रामीणों का गुस्सा — चुनावी वादों की गड्ढों में गिरती साख
गांव वालों ने बताया, कई बार पंचायत, विधायक, यहां तक कि चुनावी रैलियों में भी सड़क की मांग रखी। हर बार मिला सिर्फ “विकास होगा” का आश्वासन — पर जमीन पर सिर्फ धूल, कीचड़ और गड्ढे हैं। “MLA जी की गाड़ी तो ऐसी चलती है जैसे बादलों पर हो, पर हमें ज़मीन पर रेंगना पड़ता है।”
विकास बनाम धरातल: किसे मानें सच?
सरकारी बयान:
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“हमने करोड़ों की योजनाएं स्वीकृत की हैं।”
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“ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण प्राथमिकता है।”
ग्रामीण हकीकत:
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“सड़क नहीं, सिर्फ झूठ की परतें बिछी हैं।”
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“जहां वादे खत्म होते हैं, वहां ट्रॉली शुरू होती है।”
“विकास की गाड़ी तो खूब दौड़ रही है, बस उसके टायर कभी इन गांवों तक पहुंचते नहीं।”
बबली लोधी की कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के ‘गर्भवती’ होने की निशानी है — जो अब भी प्रसव पीड़ा में है, लेकिन राहत की कोई उम्मीद नहीं। जहां नेता रिबन काट रहे हैं, वहां जनता ट्रॉली पकड़ रही है। “देश बदल रहा है — बस गांव वहीँ अटके हैं, जहां से ‘विकास’ के कदम मुड़ जाते हैं।”